Health Problem in India

हमारी राष्ट्रीय स्वास्थ्य समस्याएँ /Our National Health Problems in India

स्वतंत्रता के लगभग सात दशक पश्चात् भी हमारा देश अनेक समस्याओं से जूझ रहा है। ये समस्याएँ कहीं न कहीं देश के चहुँमुखी विकास (All round development) की संभावनाओं को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रही हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो स्वतंत्रता प्राप्ति के समय राष्ट्र निर्माताओं ने जो विकसित, समृद्ध एवं खुशहाल भारत के सपने संजोये थे, उनके पूरा होने में ये समस्याएँ कहीं न कहीं बाधक बनी हुई हैं।

ये समस्याएँ न केवल व्यक्ति विशेष तथा समुदाय को प्रभावित करती हैं अपितु एक सम्पूर्ण राष्ट्र के नागरिकों के विकास को बाधित करती हैं। आज हमारा देश जिनं समस्याओं से घिरा हुआ है, उनमें कुछ प्रमुख निम्न हैं –

  • जनसंख्या में तीव्र गति से हो रही वृद्धि
  • गरीबी
  • मँहगाई
  • बेरोजगारी
  • स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ
  • भ्रष्टाचार
  • महिलाओं एवं बच्चों पर अत्याचार एवं उनका शोषण
  • विभिन्न सामाजिक समस्याएँ जैसे दहेज प्रथा, अविवाहित माताएँ, वैश्यावृत्ति, नशाखोरी आदि

स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ (Health Problems)

स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ (Health problems) भी आज देश की एक प्रमुख समस्या बनी हुई हैं। हालाँकि चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में हो रहे नये-नये अनुसंधानों (Research) के द्वारा बीमारियों का निदान (Diagnosis of diseases), उपचार (Treatment) तथा रोकथाम (Prevention) पहले की तुलना में अधिक प्रभावशाली एवं आसान तरीके से संभव हो पाया है।

आज बीमारियों के निदान एवं उपचार हेतु बेहतर तकनीकों का उपयोग किया जाने लगा है। इन सबके बावजूद भी दिन पर दिन नई-नई बीमारियों के उत्पन्न हो जाने के कारण स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। बढ़ता हुआ प्रदूषण, खाद्य पदार्थों में हो रही मिलावटें, अस्वास्थ्यकर जीवन शैली, जीवन में बढ़ता तनाव आदि स्थितियाँ भी व्यक्ति के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल रही हैं। यही कारण है कि स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ आज भी देश की एक प्रमुख समस्या बनी हुई हैं।

जैसा कहा भी गया है कि — “स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है।”
यदि व्यक्ति स्वस्थ नहीं है तो उसके चहुमुखी विकास की कल्पना करना बेमानी होगी। अस्वस्थता व्यक्ति के न केवल शारीरिक अपितु मानसिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक विकास को भी प्रभावित करती है।

स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के कारण (Causes of Health Problems)

स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के लिए अनेक कारण उत्तरदायी हैं, जिन्हें निम्न चार भागों में बाँटा गया है –

  • (A) पर्यावरणीय कारण (Environmental Causes)
  • (B) सामाजिक-आर्थिक कारण (Socio-economic Causes)
  • (C) राजनैतिक कारण (Political Causes)

(D) अन्य कारण (Other Causes)

(A) पर्यावरणीय कारण (Environmental Causes)

विभिन्न पर्यावरणीय कारक (Environmental factors) जो कि स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ उत्पन्न कर सकते हैं, उनमें शामिल हैं:

  1. पर्यावरण में रोगजनक (Pathogenic) सूक्ष्म जीवों एवं कीटों की उपस्थिति: पर्यावरण में रोगजनक सूक्ष्म जीव (Pathogenic micro-organisms) जैसे बैक्टीरिया (Bacteria), वायरस (Virus), फंगस (Fungus), प्रोटोजोआ (Protozoa) आदि तथा विभिन्न प्रकार के कीट जैसे मक्खी (Fly), मच्छर (Mosquito), बालूमक्खी (Sandfly) आदि की उपस्थिति व्यक्ति में अनेक रोग उत्पन्न कर देती है।
  2. पर्यावरण प्रदूषण: जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, शोर प्रदूषण आदि स्थितियों की मौजूदगी व्यक्ति में अनेक स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न कर देती हैं।

    प्रदूषित जल का सेवन निम्न स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न कर देता है:

    1. गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल बीमारियाँ: जैसे हैजा (Cholera), पोलियो (Polio), पेचिस (Dysentery), टायफाइड बुखार (Typhoid fever), हिपेटाइटिस-ए (Hepatitis-A), अमीबायसिस (Amoebiasis), गिआर्डिएसिस (Giardiasis) आदि।
    2. श्वसनीय समस्याएँ: जल में हानिकारक रसायनों की उपस्थिति ब्रोंकाई (Bronchi), ब्रोंकिओल्स (Bronchioles) तथा फेफड़े (Lungs) संबंधित रोग उत्पन्न कर देती है।
    3. त्वचीय समस्याएँ: प्रदूषित जल का उपयोग अनेक त्वचीय समस्याएँ जैसे डर्मेटाइटिस (Dermatitis), स्केबीज (Scabies), ट्रेकोमा (Trachoma) आदि उत्पन्न कर देता है।
    4. न्यूरोलॉजिकल समस्याएँ: प्रदूषित जल का उपयोग सिर दर्द, डेलीरियम, दौरे आना (Seizures) आदि उत्पन्न कर सकता है।
    5. दाँत संबंधी विकार: पेयजल में फ्लोराइड की अधिक मात्रा दाँतों संबंधी विकार उत्पन्न कर देती है।

    वायु में सल्फर के ऑक्साइड्स, कार्बन मोनोऑक्साइड, हाइड्रोकार्बन, लैड, केडमियम, फोटोकेमिकल ऑक्सीडेंट्स जैसे ओजोन, एल्डीहाइड्स आदि की उपस्थिति विभिन्न श्वसनीय, न्यूरोलॉजिकल, हृदय, आँखों संबंधी, गर्भपात (Abortion), समय पूर्व प्रसव (Preterm labour), नवजात में जन्मजात विकृतियाँ (Congenital disorders in neonate) आदि समस्याएँ उत्पन्न कर देती है।

    पर्यावरण में शोर प्रदूषण की उपस्थिति व्यक्ति में निम्न स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न कर देती है:

    • बहरापन या सुनने की क्षमता का कम हो जाना।
    • सिरदर्द।
    • चिडचिडापन तथा असहज महसूस होना।
    • बैचैनी।
    • नींद का कम आना या नींद का नहीं आना।
    • रक्त दाब का बढ़ जाना (Hypertension), पल्स रेट का बढ़ जाना (Tachycardia) आदि।

पर्यावरणीय कारण (Environmental Causes) – जारी

  1. मृदा प्रदूषण: मृदा में घरेलू कूड़ा-करकट, उद्योगों से निकले अपशिष्ट, कृषि का उत्पादन बढ़ाने हेतु उपयोग में लिए जाने वाले उर्वरक, कीटों के नाश हेतु उपयोग में लिए जाने वाले कीटनाशक आदि के मिल जाने एवं लोगों का खुले में शौच करना आदि के कारण यह प्रदूषित हो जाती है। यह प्रदूषित मृदा भी विभिन्न रोगों के संचारण में सहायक होती है।
  2. अत्यधिक भीड़-भाड़: अत्यधिक भीड़-भाड़ भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से विभिन्न स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न कर देती है। यह स्थिति विभिन्न श्वसनीय संक्रमण (Respiratory infections) जो कि मुख्य रूप से बिन्दुक संक्रमण (Droplet infection) द्वारा संचारित होते हैं, के संचारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
  3. कचरे का उपयुक्त निस्तारण न होना: घरों, दफ्तरों, कल-कारखानों आदि से निकले अपशिष्ट पर्यावरणीय प्रदूषण को बढ़ाते हैं जो अनेक रोगों के संचारण में सहायक होता है।
  4. अनुपयुक्त आवासीय व्यवस्था: आवास की स्थिति, बनावट, स्वच्छता की स्थिति, रोगजनक सूक्ष्म जीवों की उपस्थिति अथवा अनुपस्थिति आदि मानव स्वास्थ्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालती है। आवास संबंधी निम्न स्थितियाँ व्यक्ति के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं:
    • पर्याप्त स्वच्छता का अभाव तथा घर में रोगजनक सूक्ष्म जीवों (Pathogenic micro-organisms) एवं रोगवाहक कीटों (Vector insects) की उपस्थिति।
    • घर का अत्यधिक भीड़-भाड़ तथा प्रदूषण युक्त क्षेत्र में स्थित होना।
    • घर के फर्श का अत्यधिक चिकना होना तथा इसमें अभियांत्रिकी दोष का होना।
    • फर्श में दरारें तथा दीवारों में बिल आदि की मौजूदगी, जो रोगवाहक कीटों जैसे चूहा, खटमल आदि की वृद्धि को बढ़ावा देती हैं।
    • घर में पर्याप्त संवातन (Ventilation) तथा सूर्य के प्रकाश की आवक का अभाव।

(B) सामाजिक-आर्थिक कारण (Socio-economic Causes)

विभिन्न सामाजिक एवं आर्थिक कारक भी स्वास्थ्य समस्याओं की उत्पत्ति के लिए उत्तरदायी होते हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं:

  1. गरीबी
  2. बेरोजगारी
  3. मँहगाई
  4. अपर्याप्त पोषण
  5. स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालने वाली विभिन्न सामाजिक प्रथाएँ एवं रीति-रिवाज
  6. जनसंख्या में तीव्र वृद्धि
  7. अशिक्षा
  8. स्वास्थ्य के प्रति लोगों में जागरूकता का अभाव
  9. खाद्य पदार्थों के संबंध में फैली भ्रान्तियाँ
  10. भ्रष्टाचार
  11. विभिन्न सामाजिक समस्याएँ जैसे दहेज प्रथा, वैश्यावृत्ति, अविवाहित माताएँ, नशे की लत आदि

(C) राजनैतिक कारण (Political Causes)

  1. स्वास्थ्य सेवाओं के क्रियान्वयन के लिए पर्याप्त बजट का आवंटन नहीं होना।
  2. बेहतर स्वास्थ्य नीति का अभाव।
  3. पर्याप्त संसाधनों की अनुपलब्धता के कारण प्रभावी स्वास्थ्य देखभाल का सुलभ नहीं होना।
  4. बढ़ता हुआ भ्रष्टाचार।

(D) अन्य कारण (Other Causes)

  1. स्वास्थ्य सेवाओं का शहरीकरण (Urbanization) अथवा स्वास्थ्य सेवाओं का असमान वितरण।
  2. स्वास्थ्य सेवाओं के नियोजन (Planning) एवं क्रियान्वयन में स्वयसेवी संगठनों की पर्याप्त सहभागिता का अभाव।
  3. जनसमुदाय को सरकार द्वारा प्रदान की जा रही स्वास्थ्य सेवाओं एवं योजनाओं के बारे में पर्याप्त जानकारी का अभाव।
  4. जनसमुदाय में स्वास्थ्य के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण का अभाव।

भारत की स्वास्थ्य समस्याएँ (Health Problems of India)

हमारा देश अनेक स्वास्थ्य समस्याओं से घिरा हुआ है, जिनमें कुछ प्रमुख निम्न हैं:

  1. संक्रामक बीमारियों संबंधित समस्याएँ (Communicable Diseases Problems)
  2. असंक्रामक बीमारियों संबंधित समस्याएँ (Non-Communicable Diseases Problems)
  3. पोषणीय समस्याएँ (Nutritional Problems)
  4. जनसंख्या विस्फोट (Population Explosion)
  5. पर्यावरणीय प्रदूषण संबंधी समस्याएँ (Environmental Pollution Problems)
  6. चिकित्सा देखभाल संबंधी समस्याएँ (Medical Care Problems)

1. संक्रामक बीमारियों संबंधित समस्याएँ (Communicable Diseases Problems)

संक्रामक बीमारियों की मौजूदगी आज भी एक प्रमुख स्वास्थ्य समस्या बनी हुई है। ऐसी बीमारियाँ जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक संचारित हो जाती हैं, उन्हें संक्रामक बीमारियाँ कहते हैं। हमारे देश में पाई जाने वाली मुख्य संक्रामक बीमारियाँ निम्न हैं:

2. असंक्रामक बीमारियों संबंधित समस्याएँ (Non-Communicable Diseases Problems)

वे बीमारियाँ जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में संचारित (Transmit) नहीं होती हैं, असंक्रामक बीमारियाँ कहलाती हैं। असंक्रामक बीमारियों की मौजूदगी भी देश की एक प्रमुख स्वास्थ्य समस्या है। इन बीमारियों में मुख्य रूप से शामिल हैं:

  • कैन्सर (Cancer)
  • डायबिटीज मैलिटस (Diabetes mellitus)
  • हृदयी बीमारियाँ (Heart diseases)
  • उच्च रक्तचाप (Hypertension)
  • अस्थमा (Asthma)
  • केटेरेक्ट (Cataract)
  • पेप्टिक अल्सर (Peptic ulcer)

3. पोषणीय समस्याएँ (Nutritional Problems)

पोषण संबंधी बीमारियाँ देश की एक प्रमुख स्वास्थ्य समस्या हैं। ये बीमारियाँ आहार में किसी पोषक तत्व (Nutrient) की कमी या अधिकता के कारण उत्पन्न होती हैं। देश की जनसंख्या का बहुत छोटा भाग ही संतुलित आहार (Balanced diet) का सेवन करता है।

निम्न आय वर्गीय परिवार कुपोषण (Malnutrition) से ग्रसित हैं, वहीं उच्च आय वर्गीय परिवारों द्वारा लिया जाने वाला अतिपोषण (Over nutrition) भी बीमारियों को जन्म देता है। व्यक्ति के पूर्ण रूप से स्वस्थ रहने के लिए संतुलित आहार लेना आवश्यक है। संतुलित आहार में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, विटामिन्स, खनिज लवण एवं जल उचित मात्रा में मौजूद होते हैं।

शिशु (Infants), बच्चे (Children), किशोरियाँ (Adolescent girls), गर्भवती माताएँ (Pregnant mothers) एवं स्तनपान कराने वाली महिलाएँ (Lactating women) को अतिरिक्त पोषण की आवश्यकता होती है। इसका अभाव उपयुक्त वृद्धि एवं विकास को बाधित कर सकता है या कुपोषणजनित बीमारियाँ उत्पन्न कर सकता है।

(i) प्रोटीन ऊर्जा कुपोषण (Protein Energy Malnutrition – PEM)

  • भारत जैसे विकासशील देश में PEM एक प्रमुख पोषण समस्या है। यह आहार में ऊर्जा एवं प्रोटीन की कमी के कारण उत्पन्न होती है।
  • यह मुख्य रूप से विद्यालय पूर्व बच्चों (Pre-school children) में पाई जाती है। लगभग 12% बच्चे इस समस्या से ग्रसित हैं।
  • प्रमुख कारण:
    • शरीर की आवश्यकतानुसार प्रोटीन एवं ऊर्जा पर्याप्त मात्रा में नहीं लेना।
    • कैलोरी युक्त खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता का खराब होना।
    • बच्चे में संक्रमण की उपस्थिति।
  • क्लीनिकली प्रोटीन ऊर्जा कुपोषण के तीन मुख्य प्रकार हैं:
    • क्वाशिओरकर (Kwashiorkor)
    • मरासमस (Marasmus)
    • मरास्मिक क्वाशिओरकर (Marasmic Kwashiorkor)

(ii) पोषणीय एनीमिया (Nutritional Anaemia)

एनीमिया छोटे बच्चों, गर्भवती महिलाओं एवं स्तनपान कराने वाली माताओं में तुलनात्मक अधिक पाई जाती है। भारत में गर्भावस्था के दौरान लगभग दो तिहाई महिलाएँ एनीमिया का शिकार होती हैं। यह मातृक मृत्युओं में लगभग 20% के लिए जिम्मेदार होता है।

परिभाषा: आहार में एक या अधिक पोषक तत्वों की कमी के कारण हीमोग्लोबिन स्तर (Hb level) कम हो जाना पोषणीय एनीमिया कहलाता है। सामान्य वयस्क, गर्भवती महिलाएँ, छोटे बच्चे और स्कूल जाने वाले बच्चों का Hb स्तर क्रमशः 12, 11, 11 तथा 12 ग्राम/से कम हो जाना एनीमिया की उपस्थिति को इंगित करता है।

मुख्य प्रकार:

  • आयरन डेफीसिएन्सी एनीमिया (Iron Deficiency Anaemia) – आहार में आयरन की कमी से उत्पन्न।
  • मिगेलोब्लास्टिक एनीमिया (Megaloblastic Anaemia) – आहार में फॉलिक एसिड और विटामिन B12 (Cyanocobalamin) की कमी से उत्पन्न।

एनीमिया के कारण (Causes)

  • शरीर की आवश्यकतानुसार आयरन, फॉलिक एसिड तथा विटामिन B पर्याप्त मात्रा में नहीं लेना।
  • गर्भावस्था, स्तनपान तथा बाल्यावस्था में आयरन की आवश्यकता का बढ़ जाना।
  • पोषक पदार्थों का दोषपूर्ण अवशोषण (Faulty absorption)।

क्लिनिकल लक्षण (Clinical Manifestations)

  • कमजोरी (Weakness)
  • जल्दी थकान होना (Easily Fatigue)
  • सीढ़ियाँ चढ़ने या हल्का व्यायाम करने पर सांस लेने में तकलीफ (Dyspnoea on exertion)
  • त्वचा, स्कलेरा तथा म्यूकस मेम्ब्रेन का पीलापन (Yellowish discolouration of skin, sclera and mucous membrane)
  • चक्कर आना (Dizziness)
  • पाल्पिटेशन (Palpitation)
  • भूख कम लगना (Loss of appetite)
  • PICA की उपस्थिति (रोगी द्वारा पोषण रहित पदार्थों जैसे मिट्टी, चूना आदि का सेवन)

(iii) गलगण्ड या घेघा (Goitre)

आहार में आयोडीन (Iodine) की कमी से यह रोग होता है। इस रोग में गले में पाई जाने वाली थायरॉइड ग्रन्थि (Thyroid gland) का आकार अत्यधिक बढ़ जाता है। सामान्य अवस्था में थायरॉइड ग्रन्थि का वजन 25 ग्राम होता है, जो कोशिकाओं के हाइपरप्लेसिया के कारण 500 ग्राम या इससे अधिक हो जाता है। भारत में यह बीमारी मुख्य रूप से पहाड़ी इलाकों में पाई जाती है।

(iv) लैथाइरिज्म (Lathyrism)

लैथाइरिज्म लकवा (Paralysis) उत्पन्न करने वाली बीमारी है जो ‘खेसरी दाल’ के अधिक सेवन के कारण होती है। इसमें टाँगों की मांसपेशियाँ लकवाग्रस्त हो जाती हैं। भारत में यह मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और उड़ीसा में पाई जाती है।

(v) विटामिन की कमी से होने वाली बीमारियाँ (Vitamin Deficiency Diseases)

इनमें मुख्य रूप से विटामिन-A (रेटिनॉल) की कमी से होने वाली बीमारियाँ शामिल हैं:

  • रात्रि अंधता (Night blindness)
  • किरेटोमलेसिया (Keratomalacia)
  • कॉर्नियल जीरोसिस (Corneal xerosis)
  • कजक्टाइवल जीरोसिस (Conjunctival xerosis)
  • बिटॉट्स स्पॉट (Bitot’s spot)

4. जनसंख्या विस्फोट (Population Explosion)

तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या हमारे देश की एक महत्वपूर्ण समस्या है। यह गरीबी, बेरोजगारी, अपराध, पारिवारिक विघटन आदि को बढ़ाने के लिए उत्तरदायी है। स्वतंत्रता के समय देशवासियों ने जो खुशहाल और विकसित भारत का सपना देखा था, वह तेजी से बढ़ती जनसंख्या ने काफी हद तक प्रभावित कर दिया है।

2011 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या लगभग 121 करोड़ है। भारत का भौगोलिक क्षेत्रफल विश्व का लगभग 2.4% है, जबकि विश्व की लगभग 17.5% जनसंख्या यहाँ निवास करती है। सामान्य वार्षिक वृद्धि दर 0.2-0.5% होनी चाहिए, जबकि भारत में यह लगभग 2% है।

जनसंख्या विस्फोट के प्रभाव (Effects of Population Explosion)

  • खाद्य समस्या – जनसंख्या वृद्धि के कारण मांग के अनुसार आपूर्ति नहीं हो पाती।
  • महंगाई
  • बेरोजगारी
  • गरीबी
  • निरक्षरता
  • जीवन स्तर में गिरावट
  • आवासीय समस्या
  • बढ़ता हुआ शहरीकरण
  • अपराधों में बढ़ोतरी
  • पारिवारिक विघटन

5. पर्यावरणीय प्रदूषण संबंधी समस्याएँ (Environmental Pollution Problems)

पर्यावरणीय अस्वच्छता हमारे देश की एक महत्वपूर्ण स्वास्थ्य समस्या है। जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण और मृदा प्रदूषण विभिन्न रोग उत्पन्न कर सकते हैं। उदाहरण के लिए:

  • प्रदूषित जल – दस्त रोग, हैजा, पेचिस, टायफाइड, हिपेटाइटिस-ए, गैस्ट्रोएन्टेराइटिस, अमीबायसिस।
  • वायु प्रदूषण – श्वसनीय, न्यूरोलोजिकल, हृदयी और आँखों संबंधी समस्याएँ, गर्भपात, समय पूर्व प्रसव, जन्मजात विकृतियाँ।
  • ध्वनि प्रदूषण – बहरापन, चिड़चिड़ापन, सिरदर्द, नींद में कमी, रक्त दाब का बढ़ना।

पर्यावरणीय प्रदूषण के लिए प्रमुख कारण:

  • घरों, कार्यालयों और उद्योगों से निकले कूड़ा-करकट/अपशिष्ट का अनुपयुक्त निस्तारण।
  • मोटर वाहन और कारखानों से धुँआ।
  • वनों की अंधाधुंध कटाई।
  • कृषि में उपयोग किए गए उर्वरक और कीटनाशक।
  • लोगों द्वारा खुले में मलत्याग।
  • उच्च जनसंख्या घनत्व।
  • पर्यावरणीय स्वच्छता के प्रति जागरूकता का अभाव।

6. चिकित्सा देखभाल संबंधी समस्याएँ (Medical Care Problems)

स्वास्थ्य सेवाओं का असमान वितरण देशवासियों के स्वास्थ्य स्तर को कमजोर करता है। भारत की लगभग 80% जनसंख्या गाँवों में निवास करती है, जबकि स्वास्थ्य सेवाओं का 80% भाग शहरी क्षेत्रों में सीमित है।

ग्रामीण लोग आज भी रोगों के उपचार के लिए देशी नीम-हकीमों या दैवीय शक्तियों पर निर्भर हैं। उपचार की आधुनिक पद्धतियाँ महंगी हैं और निम्न आय वर्ग के लिए कठिन हैं। अस्पतालों में चिकित्सक, नर्सिंग स्टाफ और पेरामेडिकल स्टाफ की संख्या रोगियों की संख्या के अनुपात में कम है।

स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को कम करने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकारें विभिन्न स्वास्थ्य कार्यक्रम और कल्याणकारी योजनाएँ चला रही हैं। आम जनता को भी स्वस्थ राष्ट्र बनाने में अपनी भूमिका और जिम्मेदारी समझनी होगी। सरकारी प्रयास और जन सहयोग मिलकर ही देश को स्वस्थ, समृद्ध और विकसित राष्ट्र बना सकते हैं।